भगवान शिव अपनी साधना में लीन थे, तभी माता पार्वती वहां आती हैं और भगवान शिव से निवेदन करती हैं, “हे स्वामी, मुझे आपसे एक प्रश्न पूछना है।”
भगवान शिव मुस्कुराते हुए कहते हैं, “पूछिए देवी, आपका क्या प्रश्न है?”
माता पार्वती कहती हैं, “हे स्वामी, आप तीनों लोकों के स्वामी हैं। धरती पर कुछ लोग बहुत अमीर होते हैं और कुछ लोग बहुत गरीब। मैं जानना चाहती हूं कि गरीब इंसान ऐसा क्या करें कि वह भी अमीर बन सके?”
भगवान शिव गंभीर होकर कहते हैं, “हे पार्वती, आपने बहुत अच्छा प्रश्न पूछा है। मैं आपको बताता हूं कि अगर कोई गरीब इंसान आठ महत्वपूर्ण बातों को जान ले और उनका पालन करे, तो वह कभी गरीब नहीं रहेगा। इन आठ बातों को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाता हूं। ध्यान से सुनिए।”
फिर भगवान शिव कहानी प्रारंभ करते हैं…
किसी नगर में एक समृद्ध किसान रहा करता था। उस किसान के घर दो जुड़वा संताने पैदा हुईं, जिनमें से एक पुत्र था और दूसरी पुत्री। किसान ने पुत्र का नाम सोहन और पुत्री का नाम मीना रखा। समय बीतता गया, और दोनों बच्चे बड़े होने लगे। जब वे विवाह योग्य हुए, तो किसान को उनके विवाह की चिंता सताने लगी।
एक दिन, वह किसान किसी काम से पास के शहर गया, जहाँ उसे एक व्यापारी का पुत्र पसंद आया। उसने अपनी बेटी मीना का विवाह उस व्यापारी के पुत्र के साथ कर दिया। मीना अपने ससुराल चली गई, और किसान ने उसकी शादी में कोई कसर नहीं छोड़ी। अपनी बेटी की शादी के बाद, किसान अपने बेटे सोहन के विवाह के बारे में सोचने लगा। लेकिन तभी किसी बीमारी के कारण उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई ।
अचानक पत्नी की मृत्यु से किसान को गहरा सदमा लगा, और वह किसान भी गंभीर बीमारी से ग्रसित हो गया। सोहन अपने पिता की ऐसी हालत देखकर बहुत दुखी हो गया और उसने अपने पिता का इलाज कराने के लिए हर संभव प्रयास किया। उसने महंगे से महंगे वैद्य और दवाइयों का सहारा लिया, लेकिन किसान की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। धीरे-धीरे किसान की सारी संपत्ति इलाज में खर्च हो गई, और सोहन गरीबी के कगार पर आ खड़ा हुआ।
जब सोहन का सारा धन पिता के इलाज में खत्म हो गया और फिर भी वो अपने पिता को बचा नही पाया । पिता की मृत्यु के बाद सोहन ने एक गरीब घर की लड़की से विवाह कर लिया। सोहन बिल्कुल गरीब हो चुका था। उसके पास न तो कोई जमीन बची थी और न ही कोई और संपत्ति। वह अपनी पत्नी के साथ गांव के बाहर एक छोटी सी झोपड़ी में रहने लगा और दूसरों के खेतों में मजदूरी करके जीवन यापन करने लगा। दूसरी ओर, सोहन की बहन मीना, जिसका विवाह एक धनी व्यापारी के घर हुआ था, अपने भाई की स्थिति के बारे में जानकर उससे दूरी बनाने लगी।
मीना मन ही मन सोचने लगी कि उसका भाई अब पूरी तरह से कंगाल हो चुका है और अगर वह इस हालत में उसके ससुराल आता है, तो उसकी ससुराल वाले उसका मजाक उड़ाएंगे। इस डर से उसने अपने भाई से रिश्ता तोड़ लिया।
भगवान शिव, माता पार्वती से कहते हैं कि हे प्रिय, जैसा कि आपने देखा अगर कोई इंसान गरीब हो जाता है तो उसके अपने भी उस रिश्ते नाते तोड़ लेते हैं। फिर आगे भगवान शिव कहते हैं की इसी तरह समय बीतता गया, और कुछ वर्षों बाद मीना के बेटे का विवाह तय हो गया। लेकिन उसने अपने भाई सोहन को निमंत्रण नहीं भेजा। जब सोहन को अपने भांजे की शादी के बारे में पता चला, तो वह बहुत खुश हुआ और अपनी पत्नी को इस बारे में बताया। लेकिन जब उसकी पत्नी ने पूछा कि क्या उन्हें शादी का निमंत्रण मिला है, तो सोहन चुप हो गया। सोहन ने समझाने की कोशिश की कि निमंत्रण भले ही न आया हो, लेकिन आखिर वह भी तो उनकी बहन का ही बेटा है।
सोहन की पत्नी ने साफ कहा कि वह बिना निमंत्रण के वहां नहीं जाएगी। सोहन ने भी यह सोचकर अकेले जाने का फैसला किया कि अगर वह नहीं गया तो उसकी बहन को उसके ससुराल में ताने सुनने पड़ेंगे। सोहन गरीब हो चुका था, और उसके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह अपनी बहन और बहनोई के लिए कुछ खरीद सके। उसने अपने एक मित्र से उधार लेकर कुछ कपड़े खरीदे और अपनी बहन के ससुराल के लिए निकल पड़ा।
सुबह से चलते-चलते शाम हो गई और सोहन अपनी बहन के घर पहुंच गया और बाहर दरवाजे पर खड़ा होकर अपनी बहन मीना के आने का बेसब्री से इंतजार करने लगा । उसी समय, मीना की जेठानी की नजर सोहन पर पड़ी और उसने उसे पहचान लिया। जेठानी तुरंत मीना के पास जाकर बोली, “मीना, तेरा भाई तेरे घर आया है और दरवाजे पर खड़ा है।”
मीना ने जब ये सुना, तो वह चौंक गई। उसने जेठानी से पूछा, “बहन, अगर तुमने मेरे भाई को देखा है, तो मुझे बताओ कि वह किस हाल में आया है? उसने कैसे कपड़े पहन रखे हैं?”
जेठानी ने जवाब दिया, “तुम्हारा भाई फटे-पुराने कपड़ों में दरवाजे पर खड़ा है, और तुम्हारे आने का इंतजार कर रहा है।”
यह सुनकर मीना के मन में गुस्सा उमड़ आया। वह अपने भाई से मिलने के लिए जल्दी-जल्दी दरवाजे की ओर बढ़ी। सोहन ने जब अपनी बहन को आते देखा, तो उसकी आंखों में खुशी के आंसू आ गए। मीना उसे अंदर ले गई और पूछने लगी, “भाई, तुम्हें यहां किसने बुलाया? तुम यहां कैसे आ गए?”
सोहन ने नम्रता से कहा, “बहन, मैंने सुना कि मेरे भांजे की शादी है, इसलिए मैं तुम्हारे और जीजाजी के लिए नए कपड़े लेकर आया हूं। मैंने सोचा कि तुम्हें खुश करने के लिए यहां आना चाहिए।”
मीना ने गुस्से से कहा, “भाई, तुम इस हालत में मेरे घर क्यों आए? फटे-पुराने कपड़े पहनकर यहां आना मेरे लिए शर्म की बात है। कम से कम मेरी इज्जत का तो ख्याल किया होता।”
सोहन यह सुनकर बहुत आहत हुआ, लेकिन उसने अपनी बहन के पैर पकड़ लिए और माफी मांगते हुए कहा, “मुझे माफ कर दो बहन, मैंने कभी नहीं चाहा कि तुम्हारी बदनामी हो। मैं तो सिर्फ तुम्हारे लिए और तुम्हारे बेटे के लिए कुछ कपड़े लाया हूं। अगर मुझे पता होता कि तुम मेरी वजह से इतनी परेशान हो जाओगी, तो मैं कभी यहां नहीं आता।”
मीना का गुस्सा कुछ कम हुआ, और उसने कहा, “ठीक है, अब जब तुम आ ही गए हो, तो मेरी बात सुन लो। जब तक शादी खत्म नहीं हो जाती, तुम इस कमरे में रहोगे। बाहर मत निकलना, वरना लोग तुम्हें देखकर कहेंगे कि मीना का भाई भिखारी है। जब मेहमानों के लिए भोजन तैयार होगा, तो मैं तुम्हारे लिए थाली इसी कमरे में भेज दूंगी। खाना खाकर तुम पिछले दरवाजे से चुपचाप अपने घर चले जाना।”
सोहन ने सिर झुकाकर कहा, “ठीक है बहन, मैं आज रात ही लौट जाऊंगा। लेकिन तुम और जीजाजी के लिए जो कपड़े लाया हूं, उन्हें रख लो।”
मीना ने कपड़े ले लिए और कमरे से बाहर चली गई। जाते वक्त उसने बाहर से दरवाजे की कुंडी भी बंद कर दी। सोहन कमरे में बैठकर अपनी बहन के लौटने का इंतजार करने लगा। उसे लगा कि बहन जल्दी ही उसे खाना देने आएगी। लेकिन मीना अपने कामों में इतनी व्यस्त हो गई कि उसे याद ही नहीं रहा कि उसका भाई कमरे में बंद है।
दिन बीतते गए और सोहन भूख और प्यास से तड़पने लगा। उसने कई बार अपनी बहन को पुकारा, लेकिन उसकी आवाज किसी तक नहीं पहुंची। दो दिन तक वह उसी हालत में पड़ा रहा। अंत में, मीना की जेठानी किसी काम से उस कमरे के पास से गुजरी। सोहन ने उसकी आवाज सुनी और दरवाजे को जोर-जोर से पीटने लगा। जेठानी ने दरवाजे की आवाज सुनी और दरवाजा खोलकर अंदर झांका।
सोहन को देखकर वह हैरान रह गई और पूछा, “भाई, तुम्हें इस कमरे में किसने बंद किया?”
सोहन ने कोई जवाब नहीं दिया, क्योंकि वह अपनी बहन को उसकी जेठानी की नजरों में गिराना नहीं चाहता था। लेकिन जब जेठानी ने दोबारा पूछा, तो सोहन ने कहा, “मैं यहां आराम कर रहा था, और किसी ने गलती से दरवाजे की कुंडी लगा दी।”
फिर सोहन चुपचाप पिछले दरवाजे से बाहर निकल गया और अपने घर की ओर चल पड़ा। भूख-प्यास और कमजोरी के कारण वह धीरे-धीरे चलने लगा। जब उसकी हालत और बिगड़ने लगी, तो अचानक एक बूढ़ी औरत कहीं से आ गई और गिरने से पहले ही उसे पकड़ लिया।
कई घंटे बाद जब सोहन को होश आया, उसने खुद को एक वृद्ध महिला की गोद में पाया। वह महिला एक पंखा लेकर सोहन को हवा कर रही थी। होश में आते ही सोहन उठकर खड़ा हो गया और पूछा, “मैया, आप कौन हैं?”
भगवान शिव ने कहा, “सोहन, जिस महिला की गोद में गिरा, वह कोई और नहीं, देवी माँ थीं। सोहन की पत्नी रोज़ उनकी पूजा करती थी। जब सोहन बेहोश हो गया, देवी माँ ने उसे संभाल लिया और अपनी गोद में सुला दिया।”
होश में आने के बाद सोहन ने देवी माँ को प्रणाम किया और पूछा, “माँ, आप कौन हैं?”
महिला ने कहा, “बेटा, मैं एक दुखियारी हूँ, जो इस जंगल में रहती हूँ।”
सोहन ने उन्हें प्रणाम किया और अपने घर की ओर चलने लगा। तभी वह महिला बोलीं, “बेटा, कहां से आ रहे हो और कहां जा रहे हो?”
सोहन ने बताया, “मेरे भांजे की शादी थी, इसलिए मैं अपनी बहन के घर गया था। अब अपने गांव लौट रहा हूँ।”
महिला ने कहा, “बेटा, यदि बुरा न मानो, तो एक बात पूछ सकती हूँ?”
सोहन ने जवाब दिया, “पूछो माँ, क्या पूछना चाहती हो?”
महिला ने पूछा, “यदि तुम अपनी बहन के घर से आ रहे हो, तो खाली हाथ कैसे लौट रहे हो? क्या तुम्हारी बहन ने तुम्हारे बच्चों और पत्नी के लिए कुछ नहीं भेजा?”
सोहन यह सुनकर रो पड़ा और महिला को सब कुछ बता दिया।
महिला ने कहा, “बेटा, चिंता मत करो। जो हो गया, उसे भूल जाओ। यहाँ पास ही मेरा एक बगीचा है, वहाँ जाकर फल खा लो और कुछ अपनी पत्नी और बच्चों के लिए भी ले जाओ। जब वे पूछें कि तुम्हारी बहन ने क्या भेजा, तो कह देना कि फल भेजे हैं। इससे तुम्हारी इज्जत बनी रहेगी।”
सोहन ने उनकी बात मान ली और बगीचे में जाकर फल खाए और कुछ फल थैले में रख लिए। फिर उसने महिला से विदा ली और घर की ओर चल पड़ा। महिला ने उसे जाते समय आठ बातें बताई जो उसके जीवन में अहम साबित होंगी। सोहन ने उन बातों को ध्यान में रखा और घर की ओर चल दिया।
घर पहुंचकर, उसने थैला बच्चों और पत्नी को दिया। वे पूछने लगे, “पिताजी, बुआ ने हमारे लिए क्या भेजा है?”
सोहन ने थैला पत्नी को पकड़ा दिया और खेतों की ओर चला गया। जब पत्नी ने थैला खोला, तो उसमें सोने-चांदी के फल और हीरे थे।
पत्नी भागी-भागी सोहन के पास पहुंची और बोली, “तुमने क्या लाया है?”
सोहन ने सोचा कि शायद फल उन्हें पसंद नहीं आए, इसलिए बोला, “जो बहन ने भेजा, वह मैंने दे दिया। अब बच्चों में बांट दो।”
पत्नी ने कहा, “पहले घर चलो और देखो कि क्या भेजा है।”
घर पहुंचकर, सोहन ने देखा कि थैले में सोने-चांदी के फल और हीरे थे। उसे समझ आ गया कि वह महिला देवी माँ थीं। उसने मन ही मन उनका धन्यवाद किया और किसी से कुछ नहीं कहा।
अब सोहन फिर से धनी बन गया। उसने अपनी पत्नी और बच्चों के लिए एक शानदार महल बनवाया। लोग भी उसका सम्मान करने लगे।
एक दिन उसकी पत्नी ने कहा, “तुम्हारी बहन ने हमें इतना दिया है, अब हमारा नया घर बन गया है। उसे बुलाकर लाओ ताकि वह नया घर देख सके और मैं भी उससे मिल सकूँ।”
सोहन अपनी पत्नी के कहने पर फिर से बहन के ससुराल के लिए निकल गया।
भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया कि वह भोला और सच्चा सोहन फिर उसी दरवाजे पर जा पहुंचा जहां कुछ दिन पहले खड़ा हुआ था। मीना की जेठानी ने देखा और दौड़कर मीना के पास गई। “मीना, तुम्हारा भाई आया है।”
मीना ने कहा, “कोई भिखारी मेरा भाई नहीं हो सकता, मेरा कोई भाई नहीं है।”
लेकिन जेठानी ने कहा, “मीना, तुम्हारा भाई आज राजा की तरह आया है, बाहर एक सुंदर रथ खड़ा है।”
मीना ने जाकर देखा तो उसका भाई राजसी अंदाज में खड़ा था। उसने भाई को देखा और सोचा कि वह अचानक इतना अमीर कैसे हो गया?
मीना ने आरती उतारी और बोली, “भैया, मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हें बहुत कष्ट दिया।”
सोहन ने कहा, “बहन, वह समय बुरा था। अब उन बातों को भूल जाओ। मेरे साथ चलने की तैयारी करो, तुम्हारी भाभी ने तुम्हें बुलाया है।”
मीना खुशी-खुशी तैयार होकर भाई के साथ उसके घर चली आई। उसने भाई के आलीशान महल को देखा और दंग रह गई। सोहन की पत्नी ने भी ननद की खूब सेवा की, क्योंकि वह मानती थी कि उनकी ननद की मदद से ही वे समृद्ध हुए हैं।
कुछ दिनों बाद, जब मीना ससुराल लौटने लगी, तो सोहन की पत्नी ने कहा, “आपकी बहन जा रही है, इसलिए उसे कुछ उपहार दो।” सोहन ने पत्नी की बात सुनी और बाजार की ओर चल पड़ा। वहां पहुंचकर उसने एक मोची की दुकान पर जाकर कहा, “मोची भाई, मुझे अपनी बहन के लिए एक खास जूती बनवानी है, जो बोल सके। क्या तुम ऐसा कर सकते हो?”
मोची ने जवाब दिया, “भाई, मैं ऐसी जूती तो बना सकता हूँ, लेकिन उसकी कीमत बहुत ज्यादा होगी।”
सोहन ने कहा, “कीमत की चिंता मत करो, मैं तुम्हें जितना कहोगे उतना पैसा दूंगा। बस जूतियां ऐसी बनाओ कि जब मेरी बहन इन्हें पहने और चले, तो वे हर कदम पर कुछ खास बातें बोलें।”
सोहन ने फिर मोची को वो आठ बातें बताईं, जो उसे एक बूढ़ी माई ने सिखाई थीं। सोहन बोला, “पहली बात, जब मेरी बहन पहला कदम रखे तो जूतियां कहे: ‘पैसों के बाजार में बदल गई तहजीब, धन दौलत से जुड़े रहे रिश्ते हुए गरीब।’ दूसरी बात, ‘जो समय के भरोसे बैठा रहता है, वह सदा गरीब बना रहता है।’ तीसरी बात, ‘जो व्यक्ति सदैव एक ही प्रकार का कार्य करता है, वह भी हमेशा गरीब ही रहता है।’ चौथी बात, ‘गरीबी से बड़ा कोई अभिशाप नहीं, इसलिए ज्ञान को हासिल करो और अज्ञान को दूर करो।’
पाँचवी बात, ‘समय को पकड़ो और अपने कर्मों से अपनी गरीबी को दूर करो।’ छठी बात, ‘नसीब सिर्फ भाग्य के भरोसे नहीं चलता, यह इंसान के परिश्रम पर निर्भर करता है।’ सातवीं बात, ‘एक सच्चा व्यक्ति बार-बार गरीबी को मात देकर विजेता बनता है।’ और आखिरी आठवीं बात, ‘ज्ञान हमेशा एक हथियार की तरह काम करता है।’
सोहन ने मोची से कहा, “भाई, ऐसी जूतियां बना दो जो ये आठ बातें बोलें। जब मेरी बहन इन्हें सुनेगी, तो उसे अपनी गलती का एहसास होगा कि उसने अपने भाई का अपमान क्यों किया।”
फिर भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया कि उस किसान के पुत्र ने अपनी बहन के लिए सोने और चांदी से जड़ी जूतियां बनवा कर अपनी बहन को दे दी । जब मीना अपने ससुराल पहुंची, तो उसकी देवरानी और जेठानी ने पूछा, “तुम्हारे भाई ने तुम्हें क्या उपहार दिया है?” मीना ने गर्व से अपने भाई द्वारा दी गई जूतियां दिखाईं और कहा, “देखो, मेरे भाई ने मुझे ये सोने और चांदी से जड़ी हुई हीरे मोतियों वाली जूतियां दी हैं।”
जब मीना ने जूतियां पहनकर चलना शुरू किया, तो जूतियां बोलने लगीं, “पैसों के बाजार में बदल गई तहजीब, धन दौलत से जुड़े रहे रिश्ते हुए गरीब।” यह सुनकर मीना का सिर शर्म से झुक गया और उसे अपने भाई की याद आ गई। वह अचानक रोने लगी।
देवरानी और जेठानी ने उसे रोते देखा और पूछा, “मीना, क्या हुआ? तुम क्यों रो रही हो?” मीना ने रोते हुए अपनी सारी कहानी बताई, “मैंने पैसे के घमंड में अपने भाई का कितना अपमान किया। मैंने उसे एक गिलास पानी तक नहीं दिया। आज देखो, मेरे भाई ने मुझे कितनी कीमती जूतियां बनवाकर दी हैं। अब मुझे अपने आप से घृणा होने लगी है, मैं जीना नहीं चाहती।”
तभी मीना की जेठानी ने उसे समझाया, “बहन, जो भी हुआ उसे भूल जाओ। आगे से ध्यान रखना कि कभी किसी के साथ ऐसा बर्ताव मत करना, क्योंकि जो व्यक्ति धन दौलत का घमंड करता है, उससे माता लक्ष्मी हमेशा के लिए दूर हो जाती हैं।”
मीना को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने वादा किया कि अब वह हमेशा प्रेम और सम्मान के साथ सबके साथ पेश आएगी।